Chalisa

Tulsi Mata Chalisa Lyrics in English – Chhap Design

Tulsi Mata Chalisa

Credit the Video : Bhakti Bhajan Mantra by Manjeera Ganguly YouTube Channel

Tulsi Mata Chalisa

Tulsi Mata Chalisa Lyrics in English

॥ Doha ॥

Jai Jai Tulsi Bhagavati Satyavati Sukhdani ।
Namo Namo Hari Preyasi Shri Vrinda Gun Khani ॥
Shri Hari Shish Birajini, Dehu Amar Var Amb ।
Janhit He Vrindavani Ab Na Karahu Vilamb ॥

॥ Chaupai ॥

Dhanya Dhanya Shri Tulasi Mata ।
Mahima Agam Sada Shruti Gata ॥ 1 ॥

Hari Ke Pranahu Se Tum Pyari ।
Harihi Hetu Kinho Tap Bhaari ॥ 2 ॥

Jab Prasann Hai Darshan Dinhyo ।
Tab Kar Jori Vinay Us Kinhyo ॥ 3 ॥

He Bhagvant Kant Mam Hohu ।
Deen Jaani Jani Chhadahu Chhohu ॥ 4 ॥

Suni Lakshmi Tulasi Ki Baani ।
Dinho Shrap Kadh Par Aani ॥ 5 ॥

Us Ayogya Var Maangan Haari ।
Hohu Vitap Tum Jad Tanu Dhaari ॥ 6 ॥

Suni Tulasihi Shrapyo Tehim Thama ।
Karhu Vaas Tuhu Neechan Dhama ॥ 7 ॥

Diyo Vachan Hari Tab Tatkala ।
Sunahu Sumukhi Jani Hohu Bihala ॥ 8 ॥

Samay Paai Vhau Rau Paati Tora ।
Pujihau Aas Vachan Sat Mora ॥ 9 ॥

Tab Gokul Mah Gop Sudama ।
Taasu Bhai Tulasi Tu Bama ॥ 10 ॥

Krishna Raas Leela Ke Mahi ।
Radhe Shakyo Prem Lakhi Naahi ॥ 11 ॥

Diyo Shrap Tulasih Tatkala ।
Nar Lokahi Tum Janmahu Baala ॥ 12 ॥

Yo Gop Vah Danav Raja ।
Shankh Chud Naamak Shir Taja ॥ 13 ॥

Tulasi Bhai Tasu ki Naari ।
Param Sati Gun Roop Agari ॥ 14 ॥

As Dvai Kalp Bit Jab Gayaoo ।
Kalp Tritiya Janm Tab Bhayaoo ॥ 15 ॥

Vrinda Naam Bhayo Tulasi Ko ।
Asur Jalandhar Naam Pati Ko ॥ 16 ॥

Kari Ati Dvand Atul Baldhama ।
Linha Shankar Se Sangram ॥ 17 ॥

Ab Nij Sainy Sahit Shiv Haare ।
Marahi Na Tab Har Harihi Pukare ॥ 18 ॥

Pativrata Vrinda Thi Naari ।
Kou Na Sake Patihi Sanhari ॥ 19 ॥

Tab Jalandhar Hi Bhesh Banai ।
Vrinda Dhig Hari Pahuchyo Jaai ॥ 20 ॥

Shiv Hit Lahi Kari Kapat Prasanga ।
Kiyo Satitva Dharm Tohi Bhanga ॥ 21 ॥

Bhayo Jalandhar Kar Sanhara ।
Suni Ur Shok Upara ॥ 22 ॥

Tihi Kshan Diyo Kapat Hari Taari ।
Lakhi Vrinda Dukh Gira Uchari ॥ 23 ॥

Jalandhar Jas Hatyo Abhita ।
Soi Ravan Tas Harihi Sita ॥ 24 ॥

As Prastar Sam Hriday Tumhara ।
Dharm Khandi Mam Patihi Sanhara ॥ 25 ॥

Yahi Kaaran Lahi Shrap Hamara ।
Hove Tanu Pashan Tumhara ॥ 26 ॥

Suni Hari Turatahi Vachan Uchare ।
Diyo Shrap Bina Vichare ॥ 27 ॥

Lakhyo Na Nij Kartuti Pati Ko ।
Chhalan Chahyo Jab Parvati Ko ॥ 28 ॥

Jadmati Tuhu As Ho Jadroopa ।
Jag Mah Tulasi Vitap Anupa ॥ 29 ॥

Dhagv Roop Ham Shaligrama ।
Nadi Gandaki Bich Lalaama ॥ 30 ॥

Jo Tulasi Dal Hamhi Chadh Ihai ।
Sab Sukh Bhogi Param Pad Paihai ॥ 31 ॥

Binu Tulasi Hari Jalat Sharira ।
Atishay Uthat Shish Ur Peera ॥ 32 ॥

Jo Tulasi Dal Hari Shish Dhaarat ।
So Sahastra Ghat Amrit Daarat ॥ 33 ॥

Tulasi Hari Man Ranjani Haari ।
Rog Dosh Dukh Bhanjani Haari ॥ 34 ॥

Prem Sahit Hari Bhajan Nirantar ।
Tulasi Radha Me Naahi Antar ॥ 35 ॥

Vyanjan Ho Chhappanahu Prakara ।
Binu Tulasi Dal Na Harihi Pyara ॥ 36 ॥

Sakal Tirth Tulasi Taru Chhahi ।
Lahat Mukti Jan Sanshay Naahi ॥ 37 ॥

Kavi Sundar Ik Hari Gun Gaavat ।
Tulasihi Nikat Sahasgun Paavat ॥ 38 ॥

Basat Nikat Durbasa Dhama ।
Jo Prayas Te Purv Lalaama ॥ 39 ॥

Paath Karahi Jo Nit Nar Naari ।
Hohi Sukh Bhashahi Tripurari ॥ 40 ॥

॥ Doha ॥

Tulasi Chalisa Padhahi Tulasi Taru Grah Dhari ।
Deepdaan Kari Putra Phal Pavahi Bandhyahu Naari ॥

Sakal Dukh Daridra Hari Har Hvai Param Prasann ।
Aashiya Dhan Jan Ladahi Grah Basahi Purna Atra ॥

Laahi Abhimat Phal Jagat Mah Laahi Purna Sab Kaam ।
Jei Dal Arpahi Tulasi Tah Sahas Basahi HariRam ॥

Tulasi Mahima Naam lakh Tulasi Sut Sukhram ।
Manas Chalis Rachyo Jag Mah Tulasidas ॥

***

श्री तुलसी चालीसा

॥ दोहा ॥

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ॥

॥ चौपाई ॥

धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता ॥ १ ॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥ २ ॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥ ३ ॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू ।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥ ४ ॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कध पर आनी ॥ ५ ॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥ ६ ॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥ ७ ॥

दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला ॥ ८ ॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा ।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥ ९ ॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥ १० ॥

कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥ ११ ॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
नर लोकही तुम जन्महु बाला ॥ १२ ॥

यो गोप वह दानव राजा ।
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा ॥ १३ ॥

तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सती गुण रूप अगारी ॥ १४ ॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥ १५ ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को ।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥ १६ ॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥ १७ ॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥ १८ ॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥ १९ ॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥ २० ॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा ।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥ २१ ॥

भयो जलन्धर कर संहारा ।
सुनी उर शोक उपारा ॥ २२ ॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥ २३ ॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥ २४ ॥

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥ २५ ॥

यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥ २६ ॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥ २७ ॥

लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥ २८ ॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥ २९ ॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
नदी गण्डकी बीच ललामा ॥ ३० ॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥ ३१ ॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥ ३२ ॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥ ३३ ॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥ ३४ ॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर ।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥ ३५ ॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा ।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥ ३६ ॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥ ३७ ॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥ ३८ ॥

बसत निकट दुर्बासा धामा ।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥ ३९ ॥

पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥ ४० ॥

॥ दोहा ॥

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥

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Prachi

NCERT-NOTES Class 6 to 12.

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